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जगदलपुर

साहब प्रशासन की नहीं सुन रहा इस विकलांग की बात,खबर छाप दो क्या पता इसके बाद उनके कान में जूं रेंग जाए

विकलांग चौकीदार ज्वाइनिंग के लिए पांच साल से लगा रहा अफसरों के चक्कर, चार साल तक लगातार की थी नौकरी, बिमारी की वजह से कुछ दिन के लिए थे अवकाश में

जगदलपुरSep 15, 2018 / 03:38 pm

Badal Dewangan

साहब प्रशासन की नहीं सुन रहा

साहब प्रशासन की नहीं सुन रहा इस विकलांग की बात,खबर छाप दो क्या पता इसके बाद उनके कान में जूं रेंग जाए

जगदलपुर. सरकार एक ओर विकलांगों के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर विभिन्न योजनाओं के जरिए उन्हें आम लोगों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने लायक बनाने के लिए प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओंर प्रशासनिक लापरवाही और असंवेदनशीलता के चलते इन विकलांगों को अपने अधिकार पाने सालों से अफसरों के चक्कर काटना पड़ रहा है। इसके बाद भी उनका काम नहीं हो रहा है।

लेकिन अब तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है
इनमें बकावंड ब्लॉक में रहने वाले बैसाखूराम जो कि एक पैर से विकलांग है और एक अन्य मुकबधिर जमर सिंह आजीविका के लिए कलक्टर से लेकर जनप्रतिनिधियों तक के दरवाजे खटखटा चुके हैं, लेकिन अब तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है। अंत में हारकर दोनों ही विकलांग अपनी परेशानियों का पुलिंदा लेकर मंगलवार को ‘पत्रिकाÓ कार्यालय पहुंचे। उन्होंने कहा कि यदि यह खबर बनकर छप जाए तो प्रशासन तक उनकी पुकार पहुंचेगी। शायद उसके बाद हमारी सुध लेगी। मूक बधिर की नौकरी गई और मजदूरी भी रोकी, सालभर अधिकारियों से गुहार के बाद भी राहत नहीं

अचानक एक दिन उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया
जमर सिंह मुकबाधिर हैं। लोकनिर्माण विभाग के लिए वे माइल स्टोन में पेंटिंग का कार्य करते थे। इसी दौरान तात्कालिक अपर कलक्टर हीरालाल नायक के कहने पर जमर सिंह को उनके कार्यालय में काजी का काम मिल गया। इसके बाद करीब दो महीने तक उनसे काम लिया गया। फिर अचानक एक दिन उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इस बीच दो महीने का उनको वेतन भी नहीं दिया। इतना ही नहीं पीडब्लूडी विभाग में उनके द्वारा किए गए पूर्व के पेंटिंग कार्य की भी मजदूरी नहीं दी गई है। इसके बाद से वे नौकरी और अपनी मजदूरी के लिए कलक्टर से लेकर जनप्रतिनिधियों तक से गुहार लगा चुके हैं। इस बीच उन्हें अब तक एक साल पूरे हो गए लेकिन अब तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है।

एक पैर से 70 फीसदी विकलांग है बैसाखूराम
बैसाखूराम एक पैर से करीब 70 फीसदी दिव्यांग हैं। वे बताते हैं, कि उनके परिवार में उनकी पत्नी और तीन बच्चें है। नौकरी नहीं होने की वजह से वे अत्यंत खराब दौर से गुजर रहे हैं, विकलांग होने की वजह से वे दूसरा काम भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए वे चौकीदार की नौकरी फिर से चाह रहे हैं। उन्होंने बताया कि 2009 से 2013 तक वे बकावंड के तारापुर हाइस्कूल में चौकीदार के पद पर कार्यरत थे। काम के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ी और वे कुछ दिनो तक काम पर नहीं आए। इसके बाद फिर से ज्वाइनिंग ही उनकी नहीं हुई है। अब बच्चे छोटे होने के चलते उनको पढाऩे और भरण पोषण की जिम्मेदारी उन्हीं की है, इसलिए वे फिर से नौकरी के लिए अधिकारियों के कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन अधिकारी है कि सुनते ही नहीं। वे जब भी पहुंचते हैं, आश्वासन देकर उन्हें छोड़ दिया जाता है। आज पांच साल हो गए लेकिन नौकरी उनको मिली ही नहीं।

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