पाकिस्तान में शह और मात का खेल

  • आमेर अहमद खान
  • बीबीसी उर्दू सेवा, संपादक
जरदारी और गिलानी राजनीतिक रूप से अपने विरोधियों पर भारी पड़ रहे हैं

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पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को अदालती अवमानना का दोषी करार दिया है क्योंकि उन्होंने अदालती आदेश के बावजूद राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को दोबारा खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र नहीं लिखा.

उन्हें सांकेतिक तौर पर मुश्किल से एक मिनट की सजा हुई, लेकिन यह एक मिनट दर्शाता है कि पाकिस्तानी राजनीति चुनावों की तरफ बढ़ रही है जो इस साल के आखिर तक हो सकते हैं.

पहला सवाल यह है कि कि इस पूरे राजनीतिक तमाशे में जीत किसकी हुई जिस पर लगभग सौ दिनों से पूरी सरकार की तवज्जो लगी रही. इस सवाल का कोई साफ साफ उत्तर नहीं हो सकता और इसकी वजह है देश की झल कपट भरी राजनीतिक संस्कृति और सत्ता का खंडित ढांचा.

ताकतों का टकराव

पाकिस्तानी न्यायपालिका के साथ सरकार के खराब रिश्ते किसी से नहीं छिपे हैं. राष्ट्रपति और मुख्य न्यायधीश के बीच कई मुद्दों पर छत्तीस का आंकड़ा रहा है. “सैद्धांतिक मतभेद” के लबादे में सामने वाली ये बातें लगातार छाई रहती हैं.

पाकिस्तान के 65 साल के इतिहास में सैन्य और राजनीतिक वर्ग के बीच सत्ता के लिए आंख-मिचौली का खेल चलता रहा है. इसी टकराव की वजह से तीन बार देश में सैन्य तख्तापलट हो चुका है और देश को दशकों तक सैन्य शासकों के एकछत्र राज में रहना पड़ा है. इससे राजनीतिक वर्ग की विश्वसनीयता और प्रभाव को रणनीतिक और व्यावस्थागत रूप से ठेस पहुंची है.

इस राजनीतिक खींचतान का एक नतीजा एक ऐसे संवैधानिक ढांचे के रूप में भी सामने आया है जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से चुने हुए राष्ट्रपति के पास संसद को बर्खास्त करने का अधिकार था. इसी के चलते देश का सैन्य नेतृत्व अपनी मर्जी के मुताबिक लोगों के वोटों के आधार पर चुनी हुई सरकारों को बाहर का रास्ता दिखाता रहा है.

बदला खेल का रुख

इसी के चलते देश की विदेश और सुरक्षा नीति पर पूरी तरह पाकिस्तान की सेना का नियंत्रण रहा है. देश की अर्थव्यवस्था पर भी उसका खासा प्रभाव है. पाकिस्तान की सेना दुनिया की 10 सबसे बड़ी सेनाओं में शुमार होती है.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री

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2008 में जरदारी राष्ट्रपति चुने गए और उन्होंने देश की व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव किया. एक संवैधानिक संशोधन के जरिए उन्होंने बतौर राष्ट्रपति संसद को भंग करे का अधिकार छोड़ दिया. इस संशोधन ने सेना को भी भविष्य में इस काबिल नहीं छोड़ा कि वह सैन्य शासन की सूरत में चुनी हुई संसद को भंग कर सके.

इसके नतीजे में पैदा हुए एक तरह के अधिकारों के खालीपन को न्यायपालिका ने भर दिया जो अदालतों पर सरकार के अविश्वास से चिढ़ी हुई थी. इस बात से राहत महसूस कर रहे सैन्य नेतृत्व ने भी इसका गोपनीय तौर पर समर्थन किया. उसे लगा कि सरकार की महत्वकांक्षओं पर न्यायपालिका के जरिए लगाम रखी जा सकती.

इस पृष्ठभूमि में, न तो गिलानी के खिलाफ मुकदमे से किसी को हैरानी हुई और न ही इसके फैसले से. पिछले चार साल से पाकिस्तान के सर्वोच्च जज ऐसे तरीके और माध्यम तलाश रहे थे जिनके जरिए कथित भ्रष्टाचार के लिए जरदारी पर शिकंजा कसा जा सके. पाकिस्तान के ज्यादातर विश्लेषकों की यही राय है कि इस बारे में मुख्य न्यायधीश की कोशिशों का मकसद पाकिस्तान की राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने से कहीं ज्यादा सेना के विरोधियों से छुटकारा पाना था.

जरदारी सब पर भारी

लोगों को लुभाने और राजनीतिक गोटियां बिठाने में माहिर राष्ट्रपति जरदारी ने अपने चार साल के कार्यकाल में सैन्य नेतृत्व को पछाड़ा है.

नवाज शरीफ

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इमेज कैप्शन, पूर्व प्रधानमंत्री शरीफ ने गिलानी का इस्तीफा मांगा

सबसे पहले, उन्होंने लोकतंत्र के लिए एक राजनीतिक आम सहमति कायम की. इसी कारण सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियां साफ साफ कर रही हैं कि वे तख्तापलट की स्थिति में सेना का साथ नहीं देंगी.

दूसरे, वो अमरीकियों को यह बात समझाने में भी कामयाब रहे हैं कि पाकिस्तानी सेना के साथ संपर्क रख कर उनके लक्ष्य पूरे होने वाले नहीं हैं, अगर उन्हें क्षेत्र में स्थिरता लानी है तो इसके लिए पाकिस्तान के राजनीतिक वर्ग से बात करनी होगी.

तीसरा, उन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी कि पिछले साल एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराए जाने के बाद जब सेना पर अत्यधिक स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दबाव था, तो उन्होंने मौजूदा सैन्य नेतृत्व को सहारा दिया.

ये सब बातें उन्हें खतरनाक विरोधी साबित करती हैं जिसकी सत्ता में वापसी उन्हें नापंसद करने वालों को कतई मजूर नहीं होगी. उनके कार्यकाल का यह आखिरी साल चल रहा है. अगर राजनीतिक तौर पर उन्हें नहीं पछाड़ा जा सकता है तो फिर उन्हें किसी कानून पचड़े में फंसाना होगा. इसीलिए प्रधानमंत्री गिलानी पर जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को खोलने के दबाव डाला गया, जिससे उन्होंने इनकार किया और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अदालती अवमानना का दोषी करार दिया.

राजनीति का खेल

साफ तौर पर गिलानी को दोषी करार दिए जाने के फैसले पर सरकार को ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. यह चुनावी साल है. सरकार अपनी सुविधा के मुताबिक देश में चुनावों की घोषणा कर सकती है और अपने लिए सर्वोत्तम नतीजों की उम्मीद कर सकती है.

यह बात सही है कि मौजूदा सरकार के विरोधी भरपूर कोशिश करेंगे कि गिलानी के खिलाफ आए फैसले का ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक फायदा उठाया जाए, और यह खेल पहले ही शुरू हो चुका है. पूर्व प्रधानमंत्री और बड़ी विपक्षी पार्टी पीएमएल (एन) के नेता नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री से इस्तीफा देने की मांग की है और यह भी कहा है कि उनके उत्तराधिकारी को चुनावों की घोषणा करने से पहले जरदारी के खिलाफ मामलों को फिर से खोलना चाहिए.

विपक्षी पार्टियां देश में जल्द से जल्द चुनावों की मांग कर रही हैं

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लेकिन सरकार इस तरह की मांगों पर कोई ध्यान नहीं देगी. दरअसल वे तो पहले से ही आगे की सोच रहे होंगे कि समय से पहले चुनाव कराने पर अड़े विपक्ष को कैसे मनाया जाए और कुछ वक्त हासिल किया जाए, खास कर ऐसे समय में जब गिलानी को मिली एक मिनट की सजा के चलते आने हफ्ते और महीने उनके लिए मुश्किल साबित हो सकते हैं.

अगले चुनावों से पहले सरकार के कार्यकाल के अब कुछ ही महीने बचे हैं और ऐसे में हड़बड़ और उत्साह के माहौल को अच्छी तरह महसूस किया जा सकता है. ये खेल पाकिस्तान के जरदारियों और गिलानियों को खूब पसंद है और वे इसके माहिर भी है. फिलहाल न्यायपालिका और उसके छिपे समर्थक तो इस खेल से बाहर दिख रहे है.