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वाराणसी

आखिर क्यों जाति कार्ड में पिछड़ती जा रही है बीजेपी, 2019 में आसान नहीं होगा विरोधियों का चक्रव्यूह तोडऩा

तीन संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में मिली चुकी है करारी शिकस्त, सीएम योगी का भी नहीं चल रहा जादू

वाराणसीJun 27, 2018 / 07:47 pm

Devesh Singh

Political Party

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वाराणसी. सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार को बने साल भर से अधिक का समय होगा। इसके बाद भी भगवा दल का लोगों पर से जादू खत्म होने लगा है। तीन संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली है। एक तरफ बीजेपी का वोट बैंक खिसकता जा रहा है तो दूसरी तरफ मायावती व अखिलेश यादव की पार्टी गठबंधन करके बीजेपी विरोधी वोट का बिखराव करने में जुटे हुए हैं। लोकसभा चुनाव 2019 के पहले ही बीजेपी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है।
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यूपी चुनाव 2017 में बीजेपी ने अपना दल व सुभासपा से गठबंधन करके जाति समीकरण को साधा था। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या सहित अन्य जाति के नेताओं को आगे करके चुनाव प्रचार किया था। बीजेपी ने किसी को सीएम प्रत्याशी घोषित नहीं किया था। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति काम आयी थी और पीएम नरेन्द्र मोदी की ताबड़तोड़ चुनावी सभा ने भगवा दल को 300 से अधिक सीटों पर विजय दिलायी। उस समय माना जा रहा था कि इतने प्रचंड बहुमत से आयी पार्टी यूपी में विकास के नये मापदंड स्थापित करेगी। चुनाव में विजय मिलने के बाद यूपी की कमान सीएम योगी को सौंपी गयी। इसके कुछ दिनों बाद तक सीएम योगी ने कई निर्णय करके राजनीतिक दुनिया में अलग इमेज बनाने का प्रयास किया। निकाय चुनाव में भी बीजेपी को जीत मिली। इसके चलते सीएम योगी के काम पर जनता की मुहर लगी। इसके बाद से यूपी में बीजेपी का ग्राफ गिरने लगा। गोरखपुर, फूलपुर व कैराना में पार्टी को ऐसी हार मिली कि दिल्ली तक में खलबली मची।
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बीजेपी का बिखर रहा जाति समीकरण
सीएम योगी पर जातिवाद करने का आरोप लगने के चलते बीजेपी से ब्राह्मण वोटरों की नाराजगी बढऩे लगी। बीजेपी ने इस नाराजगी को दूर करने के लिए डा.महेन्द्रनाथ पांडेय को प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया, लेकिन सफलता नहीं मिली। पिछड़े व दलित जाति के नेता तो बना दिया लेकिन उनकी जाति के लोगों को सरकार बनने का फायदा नहीं मिला। अधिकारियों की तैनाती में इन जाति के लोगों को भी दरकिनार कर दिया गया। स्थिति जब बिगड़ती गयी तो सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने कई बार यूपी सरकार पर हमला बोला। अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने जातिगत समीकरण साधने के लिए डीएम व एएसपी की तैनाती करने की मांग की थी लेकिन आरएसएस के दबाव के चलते बीजेपी अधिक परिवर्तन नहीं ला सकी। इसके चलते बीजेपी से उसका जाित समीकरण दूर होकर सपा व बसपा गठबंधन में जाने लगा है। बीजेपी ने फिर से इसी समीकरण को साधने की तैयारी की है और मंत्रिमंडल से लेकर अन्य जगहों पर बदलाव होने वाला है अब देखना है कि बीजेपी की नयी रणनीति उसे कितना फायदा पहुंचाती है इतना तो साफ है कि जिस प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी सत्ता में आयी है उस वोट बैंक को सहेजने में नाकाम साबित हो रही है।
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