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Saturday, September 26, 2020

मुझे मना लेना

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मैं तेरे दरवाजे पे कल आया था
धड़कते दिल से खटखटाया था
तूने अंदर बुलाया, नहीं आया था
चाय जो पूछा, हाँ न कह पाया था

दिल से मजबूर मैं फिर आऊँगा
फिर से कोई बहाना बनाऊंगा
आज भी तुम चाय को पूछोगी
मैं शर्माऊँगा, फिर मेरी ना होगी

कहूँ अगर कि मैं चाय नहीं पीता
कॉफ़ी ही पी लो, तुम ये कहना
मैं कुछ भी कहूँ तुम मना लेना
बन गयी है, कह के पिला देना

मैं कहूँ कि गर्मी है आज बहुत
नींबू का शर्बत ही तू बना लेना
ना कितना भी करूँ, मना लेना
मुझे पीना है ,कह के पिला देना

मिन्नते करना, मैं रुक जाऊँगा
दो पल साथ रह, खुल जाऊँगा
अपनी यादों से दिल बहलाऊँगा
अपनी बातों से बहुत हँसाऊँगा

शर्मिला हूँ पर मन का सच्चा हूँ
मिलने मिलाने में जरा कच्चा हूँ
जवानी की दहलीज पे बच्चा हूँ
सीधा सादा सा हूँ बड़ा अच्छा हूँ

तू मिले ज़िन्दगी संवर जाएगी
ज़िन्दगी खुशियों से भर जाएगी
मोहब्बत की कली खिल जाएगी
मांगी है जो मन्नत वो मिल जाएगी

Sunday, October 6, 2019

सरफ़रोशी

सरफ़रोशी

फिर सिरफिरों में वही है सरगोशी
फिर सरफ़रोशों की है सरफ़रोशी
फिर गांधीके शहादत सी ख़ामोशी
फिर गाँधीवाद को  ठहरा रहे दोषी

गांधी गांधी नहीं वो तो एक धरम है
गांधी विरोधियों में भी ऐसी शरम है
कि बंद-कमरों में नफरत उगलने वाले
बाहिर गांधी के ही गले डाल रहे माले

गाँधी को मिटाने के हसरत वाले
सौ करोड़ हैं गाँधीवाद के रखवाले
गांधी के गुनाहगारों, देश शर्मिंदा है
गांधी हमारे दिल में सदैव जिंदा है

- अमिताभ रंजन 'प्रवासी'

Friday, October 4, 2019

मुक़म्मल मुक़र्रर

मुक़म्मल मुक़र्रर

मोहब्बत की तो बेइंतिहा मुक़म्मल
दिल टूटा तो कहा मुक़र्रर मुक़र्रर

दोस्ती की तो जी जान से मुक़म्मल
दुश्मनी की तो कहा मुक़र्रर मुक़र्रर

मेरे अल्फ़ाज़ हो मुक़म्मल मुक़म्मल
लिखा मिटाया लिखा मुक़र्रर मुक़र्रर

मुक़म्मल हर चीज़ हो यही आदत मेरी
मौत भी आई तो कहा मुक़र्रर मुक़र्रर

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Wednesday, October 2, 2019

राजनीति-कुंजी

राजनीति-कुंजी

राजनीति समझन में वक़्त न जाया कीजै
राजनीति-कुंजी ही बस आजमाया कीजै

विकास, रोजगार की बातें घुमा दांया-बांया कीजै
राष्ट्रवाद का घूँट पिला, गोरक्षा में लगाया कीजै

दिन में सात -आठ बार वस्त्र बदलया कीजै
टीवी, रेडियो, मोबाइल, होर्डिंग, अखबार में छाया कीजै

शहीदों कै बच्चों की शिक्षा में धन न लगाया कीजै
ओहि धन से शहीदों कै नाम भव्य आयोजन करवाया कीजै

निंदकों के कुटि को आंगन सहित जलाया कीजै
सीबीआई, आईटी, ईडी, ट्रोलआर्मी पीछे लगाया कीजै

पक्ष के भ्रष्टचारी बलात्कारी कै संत बताया कीजै
विरोधियों कै कर के नाश, मज़ाक उड़ाया कीजै

संविधान के बुझ कर, खेलते जाया कीजै
एक एक अनुच्छेद से लाभ कमाया कीजै

एक अस्थायी अनुच्छेद से अपनी जाति मिलाया कीजै
दूसरे अस्थायी अनुच्छेद कै झटके में मिटाया कीजै

स्थानीय नेता कै जेल हवा खिलाया कीजै
शांति आड़ मैं पूरे 'राज्य' करफ्यू लगाया कीजै

एक सम्पूर्ण देश कै आतंकी बताया कीजै
उग्रवाद के आरोपी कै एमपी बनाया कीजै

इतने से न रुकिए, आगे दूर तक जाया कीजै
'दक्षिण' लगा कै कर्फ्यू, हिंदी राष्ट्रभाषा बनाया कीजै

पांच डेग जग नाप कै नाम कमाया कीजै
'देश' लगा कै कर्फ्यू, अस्थायी आरक्षण हटाया कीजै

नीच कोई जो कहिहै, जाती कार्ड खेलाया कीजै
अपनी चुपड़ी बातन से सबके खूब नचाया कीजै

राजनीति-कुंजी की भाव महिमा कहत है तुच्छ प्रवासी
नित्य जो पाठ-अनुकरण करैं, जग बनिहैं ओकरी दासी

अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

#pravasi #प्रवासी #प्रवासीसंग्रह #राजनीति #राजनीतिक_व्यंग

Tuesday, October 1, 2019

भूख

भूख

पत्थर दिल भी
देख मंजर पिघल गया

भूख थी जिसे
भूख ने ही निगल लिया

बेघर था जो
खुदा के घर निकल लिया

माटी का जो बना
मिट्टी में मिल गया

जीने को उसका जी
फिर मचल गया

वो उसी मिट्टी में
फूल बन के खिल गया

अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Monday, September 30, 2019

पानी-पानी

पानी-पानी

सवाल एक है आज सबकी ज़ुबानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?
वो नहीं हुए, हुआ शहर पानी-पानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?

रेहड़ी वालों के मेहनत पे फिरा पानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?
ठेले वालों के आंखों में भरा पानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?

हुए बाढ़ से हालात, राहत-कोष की बरसात
नेता और बाबू के मुँह भर गया पानी!
रहने दो छोड़ो, सवाल ये बचकानी
नेता और बाबू कभी हुए हैं पानी-पानी?

देख नेता और बाबू का लहू हुआ पानी
सदमें में 'प्रवासी', मांगें चुल्लू भर पानी।

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Sunday, September 22, 2019

बेटी

सृष्टि का विकास चरम पे
अब बेटीयों का नाश हो
मनुष्यों का सर्वनाश हो
इस सृष्टि का विनाश हो

हे मूर्ख क्यूँ है नासमझ
क्यूँ नहीं इतनी समझ
सृष्टि का आधार है
बेटी से ही संसार है

शुक्राणु अंडाणु हैं विशेष
इनका जब हो समावेश
मातृ-गर्भ में होकर प्रवेश
जीवन का होता श्रीगणेश

शुक्राणु का तो कोष है
बैंक से मिल जाएगा
गर्भ तो विशेष है
ये कहाँ से लाएगा

बेटियां परम हर्ष हैं
जीवन का उत्कर्ष हैं
मान है, अभिमान हैं
ईश्वर का वरदान हैं

बेटियां बच जाएंगी
सृष्टि निखर जाएगी
बेटियां पढ़ जाएंगी
सृष्टि सँवर जाएगी

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Saturday, September 14, 2019

हिंदी मेरी प्यारी हिंदी

हिंदी मेरी प्यारी हिंदी
सदियों से हमारी हिंदी
जग में सबसे न्यारी हिंदी
संस्कृत की दुलारी हिंदी
सीखने में आसान हिंदी
करोड़ों की जबान हिंदी
साहित्य की खान हिंदी
लेखकों की जान हिंदी
माथे पे तेरे आँचल हिंदी
श्रृंगार तुम्हारा चाँद बिंदी
भावनाओं की बोल हिंदी
हमको है अनमोल हिंदी

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Tuesday, September 10, 2019

हौसला

पिंजड़े में बड़ा सा पंछी
कमजोर अधमरा सा पंछी
भविष्य से अनजान था
पल भर का वो मेहमान था
एक दिन बुलंद कर हौसला
क़ैद से बस उड़ चला
देख के उड़ान उसकी
एक नई पहचान उसकी
दुनिया ये ठिगनी हो गयी
आसमां भी कम पड़ गया

अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

बारिश की बूंद

बारिश की एक बूंद माटी पे जा गिरी
बारिश की वो बूंद माटी से मिल गयी
बारिश की एक बूंद पत्थर पे जा गिरी
बारिश की वो बूंद टूट के बिखर गयी

तुझसे इश्क़ का अंजाम ऐसा हो गया
पहले तो मैं टूटा और पूरा बिखर गया
सोच के शायद ये अंजाम कम हो गया
मैं जोर से कूदा जा मिट्टी में मिल गया

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Tuesday, September 3, 2019

अभिलाषा

लड़की हूँ या कोई पाप
प्रश्न बड़ा सा है।
बाहर निकलू घूरे दुनिया
ये कैसी भाषा है?

लड़की बस घर का काम करें
ये कैसी आशा है?
कैसे जिऊ अपनी मर्जी से
मन में निराशा है?

तुझको मुझको सबको
प्रभु ने तराशा है।
फिर भेद भाव ये कैसा है
ये क्या तमाशा है?

एक दिन बदले ये दुनिया
मुझको भरोसा है।
हो लड़का लड़की एक समान
मेरी अभिलाषा है।

- अमिताभ रंजन झा

Monday, September 2, 2019

खामोशी

तेरी खामोशी को हाँ समझू या कि ना समझू
यही सोच सोच कर मैं परेशान हुआ जाता हूँ।

तुझे देखु तो गुस्सा और ना देखु तो भी गुस्सा
तेरी नाजों अदाओं पे  मैं हैरान हुआ जाता हूँ।

रुकने को नही कहती जाने को नहीं कहती हो
तेरी बेरुखी पे तो हाय मैं कुर्बान हुआ जाता हूँ।

दिलों जान जिगर से चाहा  है  मैंने हमेशा तुमको
तुम मुमताज हो न हो मैं शाहजहां हुआ जाता हूँ।

- अमिताभ रंजन झा

Saturday, April 22, 2017

पंखुड़ी

Shortlived Shahzad Wakeel, a young IITian turned Activist, inspiration for many of us.
A poem composed on his memories on his birthday.

Poem dedicated to all activists, social worker and reformers who make difference to million lives everyday

नही रहा फरिश्ता जो
कड़ोरो में एक था
पर दिल मे है आज भी
वो बड़ा ही नेक था

किसी के आंख का नूर
सब के दिल का नेग था
ये आम बात नही
वो बड़ा विशेष था

बुद्धि और साहस का
अद्भुत समावेश था
ज्ञान उसका गहना
सादगी उसका भेष था

विचारों में उसके
बड़ा ही तेज वेग था
बहुत हीं प्रभावित
उससे हरेक था

वो पंचतत्व में विलीन
किन्तु आज भी विराजमान
वो तुझमें मुझमें पंखुड़ी में
आज वो हर एक है

- अमिताभ झा

Saturday, April 15, 2017

सन्तोषम परमं सुखं

साईं इतना दीजिये जा में कुटुम्ब समाय
मैं भी भूखा न रहूँ  साधु ना भूखा जाए

ये बात यदि समझ में आ जाये
तो सन्सार के आधे रोग,
आधे दुख, आधे फसाद
तुरंत समाप्त हो जाये।

और और
ये भी  लेना है
वो भी लेना है

जिसका विज्ञापन देखा वो लेना है
जो पड़ोसी के घर देखा वो लेना है
जो सम्बंधी के घर देखा वो लेना है
जो देखा वो लेना है

इस फेर में
कुछ सेहत से जा रहे
कुछ पागल हो रहे
कुछ जान से जा रहे

मुट्ठी बाँधे आये हैं
हाथ पसारे जाना है

जीवन सरल है
लोभ असंतोष रूपी गरल का क्या काम?

पैदाइश पे ढाई किलो सही
परवरिश से साठ किलो सही
अब ख्वाहिश क्विंटल टनों का न सही न सहा जाए!

- अमिताभ रंजन झा

धर्म पत्नी

गृहस्थी अजीब धर्म है
गृहस्थ की धर्म पत्नी होती है
गृहस्थ का धर्म पत्नी को प्रसन्न रखना
पत्नी का धर्म पति को त्रस्त रखना

पति कुछ भी कर ले
पत्नी की नजर में नालायक

मजदूर
पत्नी को टेम्पू रिक्शा में घूमा
दो सौ की साड़ी दिला कर
सनीमा दिखा कर
खुश करने की कोशिश करता रहता है

प्रवासी मजदूर
पत्नी को गोआ, ताज, स्विट्ज़रलैंड
एसी ट्रैन टैक्सी, हवाई जहाज में घूमा कर
दो चार हजार की साड़ी दिला कर
फाइव स्टार में खाना खिला कर
खुश करने की कोशिश करता है

पर  पति  नालायक ही रहते हैं
और सदा रहेंगे
धर्म पत्नी की नजर में

पतियों के लिए अश्रुपूर्ण सहानुभति
परम पिता परमेश्वर  से याचना प्रार्थना
अगले जन्म मोहे पत्नी बनैयहो

-अमिताभ रंज झा

Saturday, December 17, 2016

Appraisal time poetry!

This year is about to retire, and my Secret Santa inspired me to write a poem which make people laugh out loud. Here is my effort!
*************************
I wanted a change big or small,
boss wasn't in office so I tried to call.
He picked the call, while on a stroll
and said for change he came to mall.
Standing at the ATM he's answering the call,
I rushed to join'em to roll the ball! ;)
Four hours in queue we stand like a wall,
neither him nor me got any change at all!
 Both of us came back discussing the shortfall.
Note-ban and politics making India crawl!
Computer then restarted for the updates install,
hence time for coffee and time for nature call :D

***********************
 
Matinee show of destiny, Santa laughing tall!
I’m staring at red socks with wide open eye ball!

Another year is ending and minds at turmoil,
time for appraisal, bloods freezing or at boil!
Whole year we ploughed, watered, seeded the soil!
Now it's time to harvest feedback, rewards and smile!

Let no-one break spirit, nothing let you spoil,
keep sharpening yourself with knowledge lamp and oil!
Some efforts successful, some turns futile,
those win in life who runs extra mile!

Wish you all merry christmas and happy new year! 
Amitabh Jha 

Saturday, November 26, 2016

अच्छे दिन आने वाले हैं


पीएम ने नोटों की लगायी
शपथ जो ली वो निभायी
जनता ने कंधा मिलायी
अब लगे शामत सी आयी
एटीम में कतार पायी
बिन कैश धीरज गँवाई
आय बढ़ती नहीं रे भाई
टैक्स इन्फ्लेशन बड़ी री माई
मंदी जग में है छाई
मन को बस बहला दिया कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं।

किसी गली से गुजर रहा था
चौपाल के पास मेरे
कदम बस ठिठक गए
नोटों पर चर्चा चली थी
गरीबी भी बातों में निकली थी
बेरोजगारों की हालत बुरी थी
बिजली पानी न देखी सुनी थी
विकास कागज पे हुयी थी
पर एफ़एम-टीवी के विज्ञापन
कुछ हौसला दे रही कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं।

चलते चलते नुक्कड़ पहुंचा
एक झोपड़ के पास मेरे
कदम बस ठिठक गए
दीवाल झुकी टूटी हुयी थी
ऊपर छत भी नहीं थी
घर अँधेरे में था डूबा
बाबा ने ताड़ी पी रखी थी
भूखे बच्चे बिलख रहे थे
रसोई में रोटी नहीं थी
माँ उन्हें फुसला रही थी कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं।

मैं घर आया, भांग खाया
मदिरा पी, कश लगाया
होश को धकिया दिया
हवा को लतिया दिया
तकिये को मुक्किया दिया
खुद को कुछ बहका लिया
रो-हँसा, मन पगला लिया
फिर साँसों को गहरा लिया
निराशा को झुठला दिया
सपने नए सजा लिया कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अब अच्छे दिन आने वाले हैं।

- अमिताभ रंजन झा

I support Demonitization through my article https://www.linkedin.com/pulse/living-cash-amitabh-r-jha?articleId=6203142094719160320
But now it's I a concern ....
Government should clean up this mess faster sooner.

हिंदी उर्दू के कविता, साहित्य, व्याकरण के पंडित का चरणवंदन और त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थना!



Thursday, November 24, 2016

#DeMonitization


Returning home around 9 pm,
stuck into kilometers long jam,
breathing the subtle polluted air
is not new.

What new is ...
looking outside from Olacabs ride
booked through OlaMoney
the #DigitalMoney.

What not so nice is ...
seeing long queues outside few ATMs
and NO Cash or Shutters down at most ATMs
and no change inside my wallet? :(

What a pity is ...
Seeing street vendors waiting for customers
to sell fruits, flowers, toys, cotton candies, bindis ...
9 pm and nothing sold as no one has cash? :((

#DeMonitization turning into suffocation,
masterstroke losing heartstroke,
appreciation depreciating.
rupee falling, Sensex sinking

It's becoming ugly utter,
a burden bitter with each day,
Wake up government
Make it right Governance! Faster.. sooner..

Sad.. Sad.. Sad...

- Amitabh

I support Demonitization through my article. But now it's chaotic and frustrating.

Thursday, July 28, 2016

भारत की माटी

मजहब नहीं सिखाता
आपस में वैर रखना।
ये भारत सिखाता है
तुम भी ध्यान रखना।।
हिन्दू और मुस्लिम
सिख और ईसाई।
भारत में भाई भाई
तुम ये ज्ञान रखना।।

सिर्फ डॉक्टरी पढ़कर
बना न कोई डॉक्टर।
सम्मान का पेशा है ये
सेवा और भरोसा हैं ये।।
तेरा न लेना देना
पर एक अहसान करना।
नफरत बेचने वाले
खुद को डॉक्टर न कहना।।

खुद तो गुमराह है ही
इंसानियत पे स्याह है ही।
सुरा आयात रटा कोई तोता
पर रटने से इल्म नहीं होता।।
तेरे विडियो पे खूब हंसी आती है
शब्दों में मक्कारी झलक जाती है।
ऐसी बेसिरपैर की बातों से
औरो को न गुमराह करना।।

तुम अपने धर्म का
बेशक सम्मान करना।
अपने धर्म ग्रन्थ का
खूब गुणगान करना।।
पर दूसरे धर्मों का
यूँ न अपमान करना।
भारत की माटी का
न नमक हराम करना।।

प्रजातंत्र भारत में
बोलने की है स्वतंत्रता।
पर भावना से खेलने की
ये कैसी षंडयंत्रता।।
समाज को बांटे है तू
मनमें बोये कांटे है तू।
मन में तेरे है ज़हर
इसका इलाज करना।।

माटी हमारी एक है
लहू का रंग एक है।
हम एक है सब यहाँ
मन में ये भाव रखना।।
नाम हैं अलग अलग
मालिक हमारा एक है।
नियत हमारी एक है
ये सद्भाव रखना।।

-अमिताभ झा

Thursday, November 26, 2015

प्रिय

प्रिय

प्रिय

मेरे जिह्वा पर प्रिय
बस तुम्हारा नाम हो
मेरे अधरों पे प्रिय
बस तुम्हारा गान हो
हर सुबह हर शाम हो
बस तुम्हारा ध्यान हो

मेरे मन मस्तिष्क में
बस तेरी तस्वीर हो
तेरे हाथों में लिखी
मेरी हर तक़दीर हो
भाग्य की लकीर हो
तुम से ही तौक़ीर हो

मेरे ह्रदय में प्रिय
बस तुम्हारा प्यार हो
जन्मों जन्मों तक प्रिय
तुम ही मेरी श्रृंगार हो
तुम नृत्य हो झंकार हो
तुम ही मेरी उपहार हो

मेरे नयनों में प्रिय
तुम सदा बसती रहो
मुख पे रहो या विमुख
तुम सदा हंसती रहो
संगीत सी बजती रहो
तुम सदा संजती रहो

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Another version
----------------------
मेरे जिह्वा पर प्रिय
बस तुम्हारा नाम हो
मेरे अधरों पे प्रिय
बस तुम्हारा गान हो
दिवा-रात्रि सर्वदा
हर सुबह हर शाम हो
बस तुम्हारा ध्यान हो
बस तुम्हारा ध्यान हो

मेरे मन मस्तिष्क में
बस तेरी तस्वीर हो
तेरे हाथों में लिखी
मेरी हर तक़दीर हो
प्रहर घटिका कला काष्ठा
तिथि पक्षायन वर्ष युग में
तुम से ही तौक़ीर हो
तुम से ही तौक़ीर हो

मेरे ह्रदय में प्रिय
बस तुम्हारा प्यार हो
जन्मों जन्मों तक प्रिय
तुम ही मेरी श्रृंगार हो
सोम मंगल बुद्ध वृहस्पत
शुक्र शनि रविवार हो
तुमसे ही उपहार हो
तुमसे ही उपहार हो

मेरे नयनों में प्रिय
तुम सदा बसती रहो
मुख पर रहो या विमुख
तुम सदा हंसती रहो
चैत्र वैशाख ज्येष्ठाषाढ़ श्रावण
भादव अश्विन कार्तिक अगहन
पूष माघ फागुन तुम सदा संजती रहो
तुम सदा संजती रहो

- अमिताभ रंजन झा