दिसम्बर में पुराना टेंडर खत्म हो गया। इसके बाद मेडिकल कॉलेज स्तर पर टेंडर हुए, लेकिन आपत्ति के बाद उन्हें कैंसिल कर दिया गया। इसके बाद से ही टेंडर नहीं हुए। इससे मरीजों को परेशानी आ रही है। पिछले चार माह से प्राचार्य, टेक्निकल कमेटी व वित्त सलाहकार के मध्य इसे लेकर केवल पत्राचार हो रहा है।
4 माह से सिर्फ पत्राचार
प्राचार्य डॉ. गिरीश वर्मा ने तकनीकी समिति को टेंडर कराने को कहा और ऑर्थोपेडिक विभागाध्यक्ष डॉ. ए.के. तिवारी को इसका संयोजक बनाया, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि ये सर्जिकल आइटम का मामला है, इसलिए सर्जरी के विभागाध्यक्ष को संयोजक बनाया जाए। इसके बाद सर्जरी के एचओडी को जिम्मेदारी दी गई।
उन्होंने एक पत्र प्राचार्य को लिखा, जिसमें उन्होंने कुछ और विभागों को कमेटी में शामिल करने को कहा। इस पर प्राचार्य ने विभागों को जोडऩे से मना कर दिया। वित्त सलाकार अपूर्वा अग्रवाल ने फिर से स्मरण पत्र लिखा कि टेंडर को मरीजों के हितार्थ शीघ्र कराया जाए। इससे पूर्व समिति ने इस टेंडर में आपत्ति दर्ज कराई थी, इसके बाद 4 माह से ये मामला केवल पत्राचार में उलझा पड़ा है।
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300 तरह के आइटम मिलते हैं नि:शुल्क
अस्पतालों में ओपीडी व भर्ती मरीज को करीब 300 तरह के आइटम नि:शुल्क मिलते हैं, सिर्फ कुछ आइटम ही मरीजों को खरीदने पड़ते हैं। कई तरह के धागे, आईवी सेट, डिस्पोजल सिरिंज, ब्लड की ट्यूब, ग्लब्स सहित कई आइटम भर्ती मरीजों को मिलते हैं। पहले यह टेंडर दो वर्ष के लिए 4 करोड़ रुपए में हुआ था। इस बार अभी तक तकनीकी समिति ने न आयटमों की सूची दी है, न टेंडर कराने का कोई प्रयास किया है। वित्त सलाकार अपूर्वा अग्रवाल ने बताया कि हमने प्राचार्य व तकनीकी समिति को स्मरण पत्र के माध्यम से फिर कहा है कि वह शीघ्र ही टेंडर कराए। अस्पताल प्रशासन को समय सीमा के अंदर टेंडर करना चाहिए।
न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के प्राचार्य डॉ. गिरीश वर्मा ने बताया कि तकनीकी समिति को पत्र लिखा है कि वह शीघ्र टेंडर कराए। कुछ दिन में प्रक्रिया पूरी कर टेंडर करवा दिया जाएगा।