जानिए पूरा मामला
दरअसल नक्सलियों के मूवमेंट की सूचना पर सेना के जवानों की एक टुकड़ी सर्चिंग के लिए जंगल रवाना हुई थी। जंगल में ण्क कर से बच्चों की रोने की आवाज सुनकर जवान हैरान रह गए। जब वहां पहुंचे तो देखा कि मां के पास बैठकर बच्चे रो रहे थे। यह देखने के बाद जवानों ने महिला से बात। हालांकि महिला कुछ बोल नहीं पाई। महिला का शरीर भठ्टी की तरह तप रहा था, जवानों ने तुरंत लकड़ी और चादरों से एक स्ट्रेचर बनाया और उस महिला को लिटाकर अस्पताल के लिए निकल गए। महिला का घर बीच जंगल में होने की वजह से अस्पताल 7 किलोमीटर दूर पड़ा। बावजूद जवानों ने उसे कंधे उठाकर ७ किलोमीटर चला। यह निडर जवान बिना अपनी जान की परवाह किए जंगल के रास्ते से होते हुए उस महिला को उठाकर ले गए। मुख्य सड़क पर पहुंचने के बाद इन जवानों ने एम्बुलेंस का इंतजाम करके इस महिला को अस्पताल पहुंचाया।
दरअसल नक्सलियों के मूवमेंट की सूचना पर सेना के जवानों की एक टुकड़ी सर्चिंग के लिए जंगल रवाना हुई थी। जंगल में ण्क कर से बच्चों की रोने की आवाज सुनकर जवान हैरान रह गए। जब वहां पहुंचे तो देखा कि मां के पास बैठकर बच्चे रो रहे थे। यह देखने के बाद जवानों ने महिला से बात। हालांकि महिला कुछ बोल नहीं पाई। महिला का शरीर भठ्टी की तरह तप रहा था, जवानों ने तुरंत लकड़ी और चादरों से एक स्ट्रेचर बनाया और उस महिला को लिटाकर अस्पताल के लिए निकल गए। महिला का घर बीच जंगल में होने की वजह से अस्पताल 7 किलोमीटर दूर पड़ा। बावजूद जवानों ने उसे कंधे उठाकर ७ किलोमीटर चला। यह निडर जवान बिना अपनी जान की परवाह किए जंगल के रास्ते से होते हुए उस महिला को उठाकर ले गए। मुख्य सड़क पर पहुंचने के बाद इन जवानों ने एम्बुलेंस का इंतजाम करके इस महिला को अस्पताल पहुंचाया।
जवानों ने बताया कि उनके पति जंगल में लकडियां इकठ्ठा करने गए हुए थे। जबकि उनके बच्चे घर के बाहर असहाय बैठे हुए रो रहे थे। जवानों ने आपस में विचार-विमर्श कर बीमार महिला को तुरंत उपचार के लिए अस्पताल ले जाना ज़रूरी समझा।
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि सीआरपीएफ के जवान केवल सीमा पर युद्ध ही नहीं करते बल्कि जब भी ज़रुरत हो, यह अपने देश वासियों की मदद और सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वे कभी भी अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों का जीवन बचाकर अपना कत्र्तव्य हमेश निभाते हैं।