नई दिल्ली
दिल्ली की पावर रेग्युलेटर अथॉरिटी ने सोमवार को निर्धारित समय से ज्यादा कटौती और वितरण कंपनियों द्वारा समय पर उपभोक्ताओं की शिकायतों का समाधान न करने के लिए उपभोक्ताओं को मुआवजा देने का फैसला लिया है। बिजली कटौती पर कंपनियों पर प्रति उपभोक्ता 100 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से फाइन लग सकता है। अथाॉरिटी के नोटिफिकेशन के निर्देशानुसार इलेक्ट्रिकसिटी सप्लाई कोट के नियम तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।
पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार ने अथॉरिटी को यह निर्देश दिया था कि बिजली कानून की धारा के सेक्शन 108 के तहत एक हफ्ते के भीतर ये फाइन लगाए जाएं। इस महीने भीषण गर्मी में अधिक बिजली कटौती के बाद दिल्ली सरकार ने यह कदम उठाया था। कंपनियों को निर्धारित समय से ज्यादा कटौती और उपभोक्ताओं की शिकायतों और उनके समाधान की सारी जानकारी मुहैया करानी होती है। अथॉरिटी ने अपने ऑर्डर में कंपनियों से ये जानकारियां 105 दिन के भीतर मांगी हैं।
फाइन 25 से 100 रुपए प्रति घंटे तक हो सकता है। इतना ही नहीं अगर कंपनियां इस फाइन को नहीं चुकाती हैं और उपभोक्ता लोकपाल या फिर फोरम का दरवाजा खटखटाते हैं तो इन कंपनियों को काफी भारी हरजाना चुकाना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में फाइन 5 हजार प्रति घंटे तक भी जा सकता है। इसके अलावा ऑर्डर में कुछ छूट भी दी गई हैं। ऑर्डर के मुताबिक, किसी भी नियम को पूरा न कर पाना उसका हर सूरत में उसका उल्लंघन नहीं है। अगर कंपनियां किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाती हैं, जिसका निवारण उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है तो उन्हें उल्लंघन का दोषी नहीं माना जाएगा।
दिल्ली की पावर रेग्युलेटर अथॉरिटी ने सोमवार को निर्धारित समय से ज्यादा कटौती और वितरण कंपनियों द्वारा समय पर उपभोक्ताओं की शिकायतों का समाधान न करने के लिए उपभोक्ताओं को मुआवजा देने का फैसला लिया है। बिजली कटौती पर कंपनियों पर प्रति उपभोक्ता 100 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से फाइन लग सकता है। अथाॉरिटी के नोटिफिकेशन के निर्देशानुसार इलेक्ट्रिकसिटी सप्लाई कोट के नियम तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।
पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार ने अथॉरिटी को यह निर्देश दिया था कि बिजली कानून की धारा के सेक्शन 108 के तहत एक हफ्ते के भीतर ये फाइन लगाए जाएं। इस महीने भीषण गर्मी में अधिक बिजली कटौती के बाद दिल्ली सरकार ने यह कदम उठाया था। कंपनियों को निर्धारित समय से ज्यादा कटौती और उपभोक्ताओं की शिकायतों और उनके समाधान की सारी जानकारी मुहैया करानी होती है। अथॉरिटी ने अपने ऑर्डर में कंपनियों से ये जानकारियां 105 दिन के भीतर मांगी हैं।
फाइन 25 से 100 रुपए प्रति घंटे तक हो सकता है। इतना ही नहीं अगर कंपनियां इस फाइन को नहीं चुकाती हैं और उपभोक्ता लोकपाल या फिर फोरम का दरवाजा खटखटाते हैं तो इन कंपनियों को काफी भारी हरजाना चुकाना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में फाइन 5 हजार प्रति घंटे तक भी जा सकता है। इसके अलावा ऑर्डर में कुछ छूट भी दी गई हैं। ऑर्डर के मुताबिक, किसी भी नियम को पूरा न कर पाना उसका हर सूरत में उसका उल्लंघन नहीं है। अगर कंपनियां किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाती हैं, जिसका निवारण उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है तो उन्हें उल्लंघन का दोषी नहीं माना जाएगा।