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Friday, August 5

अरावन (Aravan) एक देवता – जिनसे होती है किन्नरों (हिंजड़ो) की शादी

Arjuna Son Aravan ( Iravan) Story in Hindi : हमारे देश भारत के तमिलनाडु राज्य में एक देवता, अरावन की पूजा की जाती है। कई जगह इन्हे इरावन (Iravan)  के नाम से भी जाना जाता है।  अरावन, हिंजड़ो के देवता है इसलिए दक्षिण भारत में हिंजड़ो को अरावनी कहा जाता है। हिंजड़ो और अरावन देवता के सम्बन्ध में सबसे अचरज वाली बात यह है की हिंजड़े अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते है। हालांकि यह विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है। अब सवाल यह उठता है की अरावन है कौन, हिंजड़े उनसे क्यों शादी रचाते है और यह शादी मात्र एक दिन के लिए ही क्यों होती है ? इन सभी प्रशनो का उत्तर जानने के लिए हमे महाभारत काल में जाना पड़ेगा।




अर्जुन और नाग कन्या उलुपी के पुत्र थे अरावन :

महाभारत की कथा के अनुसार एक बार अर्जुन को, द्रोपदी से शादी की एक शर्त के उल्लंघन के कारण इंद्रप्रस्थ से निष्कासित करके एक साल की तीर्थयात्रा पर भेजा जाता है। वहाँ से निकलने के बाद अर्जुन उत्तर पूर्व भारत में जाते है जहाँ की उनकी मुलाक़ात एक विधवा नाग राजकुमारी उलूपी से होती है। दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है और दोनों विवाह कर लेते है। विवाह के कुछ समय पश्चात, उलूपी एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम अरावन रखा जाता है। पुत्र जन्म के पश्चात अर्जुन, उन दोनों को वही छोड़कर अपनी आगे की यात्रा पर निकल जाता है। अरावन नागलोक में अपनी माँ के साथ ही रहता है। युवा होने पर वो नागलोक छोड़कर अपने पिता के पास आता है। तब कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध चल रहा होता है इसलिए अर्जुन उसे युद्ध करने के लिए रणभूमि में भेज देता है।

महाभारत युद्ध में दी थी स्वयं की बलि :




महाभारत युद्ध में एक समय ऐसा आता है जब पांडवो को अपनी जीत के लिए माँ काली के चरणो में स्वेचिछ्क नर बलि हेतु एक राजकुमार की जरुरत पड़ती है। जब कोई भी राजकुमार आगे नहीं आता है तो अरावन खुद को  स्वेचिछ्क नर बलि हेतु प्रस्तुत करता है लेकिन वो शर्त रखता है की वो अविवाहित नहीं मरेगा। इस शर्त के कारण बड़ा संकट उत्त्पन हो जाता है क्योकि कोई भी राजा, यह जानते हुए की अगले दिन उसकी बेटी विधवा हो जायेगी, अरावन से अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होता है। जब कोई रास्ता नहीं बचता है तो भगवान श्री कृष्ण स्वंय को मोहिनी रूप में बदलकर अरावन से शादी करते है। अगले दिन अरावन स्वंय अपने हाथो से अपना शीश माँ काली के चरणो में अर्पित करता है। अरावन की मृत्यु के पश्चात श्री कृष्ण उसी मोहिनी रूप में काफी देर तक उसकी मृत्यु का विलाप भी करते है। अब चुकी श्री कृष्ण पुरुष होते हुए स्त्री रूप में अरावन से शादी रचाते है इसलिए किन्नर, जो की स्त्री रूप में पुरुष माने जाते है, भी अरावन से एक रात की शादी रचाते है और उन्हें अपना आराध्य देव मानते है।

कूवगम (तमिलनाडु) में है भगवान अरावन का मंदिर :

वैसे तो अब तमिलनाडु के कई हिस्सों में भगवान अरावन के मंदिर बन चुके है पर इनका सबसे प्राचीन और मुख्य मंदिर विल्लुपुरम जिले के कूवगम गाँव में है जो की Koothandavar Temple के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान अरावन के केवल शीश की पूजा की जाती है ठीक वैसे ही जैसे की राजस्थान के खाटूश्यामजी में बर्बरीक के शीश की पूजा की जाती है।

Koothandavar festival of Koovagam – हिंजड़ो का सबसे बड़ा उत्सव :

कूवगम गाँव में हर साल तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा (फुल मून) को 18 दिनों तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत होती है।  इस उत्सव में पुरे भारत वर्ष और आस पास के देशों से किन्नर इकठ्ठा होते है। पहले 16 दिन मधुर गीतों पर खूब नाच गाना होता है। किन्नर गोल घेरे बनाकर नाचते गाते है, बीच बीच में ताली बजाते है । और हंसी खुशी शादी की तैयारी करते हैं। चारों तरफ घंटियों की आवाज, उत्साही लोगों की आवाजें गूंज रही होती हैं । चारों तरफ के वातावरण को कपूर और चमेली के फूलों की खूशबू महकाती है । 17 वे दिन पुरोहित दवारा विशेष पूजा होती है और अरावन देवता को नारियल चढाया जाता है । उसके बाद आरावन देवता के सामने मंदिर के पुराहित के दवारा किन्नरों के गले में मंगलसूत्र पहनाया जाता है । जिसे थाली कहा जाता है । फिर अरावन मंदिर में अरावन की मूर्ति से शादी रचाते है ।




अतिंम दिन यानि 18 वे दिन सारे कूवगम गांव में अरावन की प्रतिमा को घूमाया जाता है और फिर उसे तोड़ दिया जाता है । उसके बाद दुल्हन बने किन्नर अपना मंगलसूत्र तोड़ देते है साथ ही चेहरे पर किए सारे श्रृंगार को भी मिटा देते हैं । और सफेद कपड़े पहन लेते है और जोर जोर से छाती पीटते है और खूब रोते है, जिसे देखकर वहां मौजूद लोगों की आंखे भी नम हो जाती है और उसके बाद आरावन उत्सव खत्म हो जाता है । और अगले साल की पहली पूर्णिमा पर फिर से मिलने का वादा करके लोगों का अपने अपने घर को जाने कार्यक्रम शुरू हो जाता है ।

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